मेरी जिज्ञासा की अब प्यास बुझा दे कोई / जतिंदर शारदा
मेरी जिज्ञासा की अब प्यास बुझा दे कोई
मेरा परिचय मेरे जीवन से करा दे कोई
फूल खिलते हैं बहारों में सभी जानते हैं
आज पतझड़ है मगर फूल खिला दे कोई
वक्त के साथ ज़माना तो बदल जाता है
मेरे घावों के निशानों को मिटा दे कोई
जो बिछड़ते हैं पुनः लौट के कब आते हैं
मेरा खोया हुआ इक मीत मिला दे कोई
आंधियाँ जलते हुए दीपों को बुझा देती हैं
आज बुझते हुए दीपों को जला दे कोई
फूल मुरझाए मगर कांटे रहे शाखों पर
राज़ पूछूंगा मैं कांटों से मिला दे कोई
आप जो आओ तो गुलशन में बहार आ जाए
काश मुरझाए हुए फूलों को खिला दे कोई
मेघ आते हैं लुभा कर ही चले जाते हैं
कब का प्यासा हूँ मेरी प्यास बुझा दे कोई
नए निर्माण की खातिर यह ज़रूरी है बहुत
गिरती दीवारों को झटके से गिरा दे कोई
नींद आई है बहुत यार मुझे सोने दो
थक गया हूँ मेरी सेज सजा दे कोई