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मेरी झोली में आकाश / गिरिराज शरण अग्रवाल
Kavita Kosh से
इतना बड़ा आकाश
मेरी झोली में आ जाए
मैंने बार-बार सोचा था
अब जब
आकाश मेरे पास आ रहा है
तो मेरी झोली
बहुत छोटी हो गई है ।
आकाश को समेटने की इच्छा
हर कोई करता है
किंतु झोली का आकार
बढ़ सके
आकाश को समा लेने को ख़ुद में
ऐसी कोशिश यहाँ
कौन करता है ?