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मेरी दादी बताती है / प्रेम कुमार "सागर"
Kavita Kosh से
नींद को जब बुलाता हूँ, वो मुझसे दूर जाती है
खुदा के खास है वे लोग जिनको नींद आती है |
खड़कता है कहीं पत्ता औ' गुलशन जाग जाता है
कभी दिन-भर मै सोता था, मेरी दादी बताती है |
यहाँ बहती नहीं गंगा तो फिर यह धार कैसी है
सिसकता है हर-एक मंज़र ये बरसाती बताती है |
असर है उन धमाकों का जो मजहब ने यहाँ बोए
हुआ क्यूँ साज हर बहरा, ये मुनादी बताती है |
लोग खुश है, देख तेरे कंगाल किस्मत पर
'सागर' बस दूर रहना इनसे,बर्बादी बताती है ||