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मेरी नाव का बस यही है फ़साना / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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मेरी नाव का बस यही है फ़साना।
जहाँ हो मुहब्बत वहीं डूब जाना।
सनम को जिताना तो आसान है पर,
बड़ा ही कठिन है स्वयं को हराना।
न दिल चाहता नाचना तो सुनो जी,
था मुश्किल मुझे उँगलियों पर नचाना।
बढ़ा ताप दुनिया का पहले ही काफ़ी,
न तुम अपने चेहरे से ज़ुल्फ़ें हटाना।
कहीं तोड़ लाऊँ न सचमुच सितारे,
सनम इश्क़ मेरा न तुम आजमाना।
है बेहतर बनाने की तरकीब उसकी,
बनाकर मिटाना मिटाकर बनाना।