मेरी नींद पर अंकित हैं सभी चुम्बन तुम्हारे / सुजाता
चाँद के उगते हुए
और सूरज के डूबने के साथ
एक प्रतीक्षा
मैं लिख रही हूँ
तुम्हारी राहों पर
अपनी पलकों पर
जागते
नींद में।
उसी दिन से।
उसी दिन, जाते हुए कुछ शब्द
तुम्हारी मशक से छलक गये थे।
वे दिन भर खेलते रहे
मेरे आँचल से।
मै सहलाती रही
उनकी चोटियाँ गूँथते
उनका उन्नत भाल।
उनकी साँसों की नन्ही आँच
भरती रही मेरे सीने में उछाह।
तुम लौटोगे जब
वे सो जाएंगे तब तक उसी उछाह भरे सीने में।
क्या कहूँ तुम्हे!
इतने शब्दों में भी
नही पाई कोई संज्ञा तुम्हारे लिए
बस पाया तुम्हें ही।
...
कोई रहस्य प्रकृति का
विज्ञान के नियम कुछ
जीवन के दर्शन
सिद्धांत और मीमांसाएँ
सब लिए लौटोगे जब आखेटक प्रिय मेरे!
मेरी आँखों का समंदर
तुम्हारे चुम्बनों की प्रतीक्षा में आलोड़ित होगा।
...
किसी आड़े वक़्त के लिए
पूरा नहीं खर्चा था धीरज
जैसे व्यय नहीं होने दिया कभी अनाज, जल, धन
मैंने बचा लिया था खुद को भी थोड़ा
उन वक़्तों के लिए
जब लौटोगे तुम खाली
किसी दिन
मेरी प्रतीक्षा में विकल।
ऐसे ही छिपा लिए थे कई बार
तुमसे छिपकर
तकिए के नीचे
तुम्हारे सभी चुम्बन
जो अंकित हैं मेरी नींद पर!
वे मेरी निधि हैं!
मौसम बदलते
समृद्धियाँ अभाव हो जाती हैं।
मेरे सिद्ध पुरुष! शब्दों का चुक जाना
तुमने अभी जाना है ढलान से उतरते हुए.
सुरक्षित हैं मेरे संगीत में लेकिन
देखो, सभी आलिंगन तुम्हारे।
शब्द से निश्शब्द की यात्रा ही
चरम आनंद है जीवन का।