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मेरी पंखुड़ियाँ / नरेश मेहन
Kavita Kosh से
ये मौसम
मुझे छेड़ता है
हवाएँ भी
करती हैं
बहुत तंग।
तितलियाँ
मेरी सहेलियां हैं
भँवरें रहते हैं
मेरे संग।
टहनियों मे
मैं खिला-खिला सा
रहता हूँ हरदम।
लेकिन
कुछ आदम हाथ
मुझे छेड़ते हैं
करते है
मुझे तंग
मेरी पंखुड़ियों को
तोड़ते मसलते हैं
फैंक देते है
गंदी जगह पर।
मुझे तोड़ो अवश्य
मैं तो तुम्हारे लिये ही
खिलता हूँ।
तुम
टूटते हो जब
अपने ही भीतर
कितना अनुभव
करते हो दर्द
वैसा ही सोचा
कभी मेरे लिये भी
टूटने का दर्द।