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मेरी पहली स्मृति / निक्की जोवान्नी
Kavita Kosh से
मेरी पहली स्मृति है यह :
एक बड़े कमरे में चरमराते लकड़ी के फ़र्श पर
भारी-भारी मेज़ें हैं लकड़ी की ।
हल्की हरी छाया वाली रोशनी
चमक रही है मेज़ों पर बीचों-बीच
बलूत की भारी नीची कुर्सियाँ हैं वहाँ
या
शायद मैं ही इतनी छोटी हूँ कि
उनपर बैठकर मैं
मेज़ पर रखी क़िताब नहीं पढ़ पाती
अपनी वह पहली बड़ी-सी क़िताब ।
वहाँ कोने में
खड़ी है चार पैरों वाली
एक अर्धगोलाकार मेज़
बाईं तरफ़ कैटलॉग रखे हैं
दाईं तरफ़ रखे हैं अख़बार
बिस्तर रखने वाली अलमारी जैसे रैक में
और दीवार पर से झाँक रही हैं पत्रिकाएँ ।
मेरा स्वागत कर रही है
पुस्तकालयकर्मी की मुस्कान
मेरा मन आशा से भरपूर है
ये किताबें — एक दूसरी ही दुनिया है
मेरा इन्तज़ार करती हुई
मेरी उँगलियों के पोरों में ।