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मेरी पेंसिल / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
नई पेंसिल मिल जाए तो
चित्र बनाऊँगा मैं अच्छा,
उसमें झटपट आ जाएगा
बस्ता टाँगे चंचल आया
उसमें कमरा, उसमें खिड़की
उसमें बारिश झमझम होगी
सोने जैसी परी सजीली
नाच-नाचती छम-छम होगी।
नई पेंसिल मिल जाए तो
चित्र बनेगा ताजा-ताजा,
नई पेंसिल मिल जाए तो
मैं हो जाऊँ मन का राजा।