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मेरी प्रतिक्रांति / असंगघोष
Kavita Kosh से
जिसे तुम क्रांति कहते हो
यह किस चिड़िया का नाम है
मुझे नहीं मालूम
मैं बस जानता हूँ
ठाकुर की बेरहम लाठी
जो उठती है
हमारे खिलाफ
हमारी गांड़-पीठ बजाने
मैं बस जानता हूँ
शास्त्री की जीभ
जो उगलती है आग
हमारे खिलाफ
शास्त्रों की दुहाई देती हुई
मैं बस जानता हूँ
बनिये की तराजू
जो मारती है डंडी
तोल में, मोल में
क्या यह सब नहीं देख पाती
तुम्हारी क्रांति
जिसे हम
सदियों से झेल रहे हैं
कराहते चले आ रहे हैं
उसके खिलाफ खड़े होना
प्रतिक्रांति है
मैं जानता हूँ
तुम जवाब नहीं दोगे