Last modified on 17 सितम्बर 2008, at 22:36

मेरी प्रीति गोपाल सूँ जिनि घटै हो / रैदास

।। राग धनाश्री।।
  
मेरी प्रीति गोपाल सूँ जिनि घटै हो।
मैं मोलि महँगी लई तन सटै हो।। टेक।।
हिरदै सुमिरंन करौं नैन आलोकनां, श्रवनां हरि कथा पूरि राखूँ।
मन मधुकर करौ, चरणां चित धरौं, रांम रसांइन रसना चाखूँ।।१।।
साध संगति बिनां भाव नहीं उपजै, भाव बिन भगति क्यूँ होइ तेरी।
बंदत रैदास रघुनाथ सुणि बीनती, गुर प्रसादि क्रिया करौ मेरी।।२।।