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मेरी प्रेमिका / संजीव ठाकुर
Kavita Kosh से
वह मुझे याद आती है
मंजीत बाबा की उस पेंटिंग के शेर की तरह
जो झपट्टा मारने को तैयार है।
(कितना प्यारा, कितना मुलायम, गुदगुदा था वह शेर)
क्रूरता तो झलकती ही नहीं थी उसके चेहरे से!
और खुद को पाता हूं मैं
हरिपाल त्यागी की पेंटिंग ‘विध्वंस’ के
उस कुत्ते की तरह
जो पूंछ ताने, भौंक रहा है,
अकेला ही विद्रोह कर रहा है।
क्या सचमुच मेरी प्रेमिका
मंजीत बाबा की पेंटिंग का शेर थी
जो घुड़की देकर चली गई मुलायम सी-
और मैं भौंक रहा हूं तभी से
हरिपाल त्यागी की पेंटिंग के कुत्ते की तरह?...