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मेरी बूढ़ी माँ / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'

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मेरे घर की शान है मेरी बूढ़ी माँ ।
घर भर की पहचान है मेरी बूढ़ी माँ ।

उसके रहने से हर काम सँवरता है,
दुर्लभतम वरदान है मेरी बूढ़ी माँ ।

घर की इज्जत हरदम ढक कर रखती है,
अति उज्जवल परिधान है मेरी बूढ़ी माँ ।

तोरण जैसी है घर के दरवाजे पर,
मंगलमय अभियान है मेरी बूढ़ी माँ ।

दर्प नहीं, न ढोंग, न व्यर्थ दिखावा है,
विनय भरा अभिमान है मेरी बूढ़ी माँ ।

घर की उन्नति घर का वैभव, घर में स्वर्ग,,
घर का सब अरमान है मेरी बूढ़ी माँ ।

शिष्टाचार उसी से हमने सीखा है,
श्रुति का सम्यक ज्ञान है मेरी बूढ़ी माँ ।

वत्सलता की मूर्ति, दया की देवी है,
ताल-मेल-लय-तान है मेरी बूढ़ी माँ ।

जाने क्या-क्या झेल के हमको पाला है,
अनजाना अवदान है मेरी बूढ़ी माँ ।

सबके आंसू अपनी ममता से हारती है,
हम सबकी मुस्कान है मेरी बूढ़ी माँ ।

न जाने वह किस-किस रूप में मुझमे है,
मेरा अनुसन्धान है मेरी बूढ़ी माँ ।

हर उलझन की सुलझन जैसी दिखती है,
शास्त्रों का व्याख्यान है मेरी बूढ़ी माँ ।

मेरा रामेश्वर, काशी, द्वारकापुरी,
राम, कृष्ण भगवान है मेरी बूढ़ी माँ ।

मेरा जीवन सर्जन-अर्जन माँ ही है,
मेरा यश-सम्मान है मेरी बूढ़ी माँ ।