भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरी बेटी चली ससुराल मेरे घर को खेले गुड़ियाँ / बुन्देली
Kavita Kosh से
बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
मेरी बेटी चली ससुराल मेरे घर को खेले गुड़ियाँ।
मैया जब मेरी करियो विदा टिपरिया धर दीजौ गुड़ियाँ।
मेरी बेटी चली ससुराल...
सर पै सोहै बेंदी भाल बिंदिया सोहै लालई लाल,
लँहगा पाटन कौ बनवाय दियौ मैया तब जैहों ससुराल।
मेरी बेटी चली ससुराल...
छोड़ो बाबुल को घर आँगन छोड़ों मैया को सब प्यार।
उड़ गई जैसे चिरिया वन की चुन गई खेत सभी चिरियाँ।
मेरे घर को खेलै गुड़ियाँ। मेरी बेटी चली ससुराल...
सजना ल्याये डोली कहार द्वार पै आ गई सब सखियाँ
बैठार दियौ डोली में संभार जाये रई लाड़ौ अब ससुराल।
मेरी बेटी चली ससुराल...
मैया सुन लो मेरी बात आज तुम आओ हमारे पास।
मोरी खेलत की गुड़ियाँ दियौ नदी जमुना में बहाय।
मोरी बेटी चली ससुराल मोरे घर को खेलैं गुड़ियाँ।