भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी महबूबा / आनंद बख़्शी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
किसी रोज़ तुम से मुलाकात होगी
मेरी जान उस दिन मेरे साथ होगी
मगर कब ना जाने ये बरसात होगी
मेरा दिल है प्यासा मेरा दिल अकेला
ज़रा तस्वीर से तू निकल के सामने आ मेरी महबूबा
मेरी तक़दीर है तू मचल के सामने आ मेरी महबूबा
मेरी महबूबा

ओ ब्ल्डडी ओ ब्ल्डडा ओ ब्ल्डडू व्हाट टू डू
ओ ब्ल्डडी ओ ब्ल्डडा ओ ब्ल्डडू वी लव यू

नहीं याद कब से मगर मैं हूँ जब से
मेरे दिल में तेरी मुहब्बत है तब से
मैं शायर हूँ तेरा तू मेरी ग़ज़ल है
बड़ी बेकरारी मुझे आजकल है
ज़रा तस्वीर से तू ...

भला कौन है वो हमें भी बताओ
ये तस्वीर उसकी हमें भी दिखाओ
ये किस्से सभी को सुनाते नहीं है
मगर दोस्तों से छुपाते नहीं है
तेरे दर्द-ए-दिल की दवा हम करेंगे
ना कुछ कर सके तो दुआ हम करेंगे
तड़प कर आएगी वो तुझे मिल जाएगी वो तेरी महबूबा
किसी रोज़ अपनी मुलाकात होगी
ज़रा तस्वीर से तू ...