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मेरी माटी / सुदर्शन वशिष्ठ
Kavita Kosh से
मेरी माटी ने दिये मुझे
दूध, गुलदाऊदी के फूल
प्यार, कचनार
मेरी माटी ने दी मुझे
भूख प्यास
सहने की शक्ति भी दी
मेरी माटी ने दी मुझे रोटी
अपनी रोटी जो
सब के सामने खाई नहीं जाती
ढक कर रखी जाती
ढक कर खाई जाती
ढक-लपेट कर रखना रहना
बा-हया होना है
माटी ढक लेती है सब कुछ
उसके ऊपर उगती हरी-हरी दूब।
मेरी माटी ने दिये मुझे संस्कार
पत्थर और भगवान से डरो
आस्था रखो कुल देवता पर
सहायी होगा विपदा में।
बहुत साहस किया
नास्तिक भी हुआ जवानी में
गाली दी भगवान को
मन्दिर जाना भी छोड़ा
फूँक से नहीं बुझा पाया
आस्था का दिया।
माटी ने जो दिया है
लेप की तरह है
रंग की तरह है
पक्के संग की तरह है।
मेरी माटी ने मुझे पैदा किया
पैदा किये मुझ में ऐसे सँस्कार
जो बार-बार करते मुझे तैयार।