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मेरी मोहब्बतें वो भुलाता कहां तलक / आदर्श गुलसिया

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मेरी मोहब्बतें वह भुलाता कहाँ तलक
पत्थर का हर निशान मिटाता कहाँ तलक

महबूब मुझसे चाहे वही पहली-सी हंसी
मैं दर्द अपने उस से छुपाता कहाँ तलक

ढा कर सितम बने हैं वह मासूम किस कदर
मैं उनको दिल के जख्म दिखाता कहाँ तलक

इक दिन तो टूटना था भरम टूट ही गया
कदमों में उनके सर मैं झुकाता कहाँ तलक

यादें तो थी बहुत-सी मगर चश्मे नम न थी
अश्कों को देर तक मैं गिराता कहाँ तलक

उसको ख़ुदा जो मान लिया मान ही लिया
सज़दे से अब मैं खुद को बचाता कहाँ तलक

साक़ी ने हाय मुझसे मुआफ़ी ही मांग ली
बरसों की प्यास थी वह बुझाता कहाँ तलक

'आदर्श' को गिराये ये मर्ज़ी जहाँ की थी
लेकिन था साथ रब तो गिराता कहाँ तलक