भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी रची दुनिया मुझसे / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बताओ मैं ऐसी क्यों हूं ?
मेरी रची दुनिया पूछती है मुझसे
 
दे सकता हूं मैं चोर-उतर:
जैसी है दुनिया, वैसी ही तो रची है

लेकिन नहीं
देखी दुनिया को जब रचा मैंने
कुछ जुड़ा उसमें मेरा
जो और कहीं नहीं है
इसलिए मेरा है

मेरी है दुनिया मेरे जैसी !
अब कोई सवाल नहीं पूछती
मेरी रची दुनिया मुझसे !