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मेरी वफाओं का मुझको यही सिला देकर / रंजना वर्मा

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मेरी वफाओं का मुझको यही सिला दे कर
गया है कोई मुझे दर्द अनकहा दे कर

हमारी चाहतें ख़्वाबों में ढल गयीं अब तो
चले गये वो मुरादों का सिलसिला दे कर

चराग़ बुझने लगे देख लो उमीदों के
जला दो आज इसे वक्त की हवा दे कर

चले भी आओ जरा जश्ने चरागां कर लें
न लौट जाओ ग़मे हिज्र की दुआ दे कर

उठीं वो आँधियाँ तूफ़ान थम नहीं पाये
तुम्हें न रोक सकी ग़म का वास्ता दे कर

कदम तो राहे वफ़ा में थे लड़खड़ाये पर
तसल्लियाँ न मिलीं मुझको ही जफ़ा दे कर

तड़प रहे जो लिये जख़्म आशनाई के
उन्हें भी राहतें बख़्शो कोई दवा दे कर