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मेरी वहशत का तेरे शहर में चर्चा होगा / शाज़ तमकनत
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मेरी वहशत का तेरे शहर में चर्चा होगा
अब मुझे देख के शायद तुझे धोका होगा
साफ़ रस्ता है चले आओ सू-ए-दीदा-ए-दिल
अक़्ल की राह से आओगे तो फेरा होगा
कौन समझेगा भला हुस्न-ए-गुरेज़ाँ की अदा
मेरे ईसा ने मेरा हाल न पूछा होगा
वजह-ए-बे-रंगी-ए-हर-शाम-ओ-सहर क्या होगी
मैं ने शायद तुझे हर रंग में देखा होगा
अब कहीं तू ही डुबोवे हमें ऐ मौज-ए-सराब
वरना फिर शिकवा-ए-पायाबी-ए-दरिया होगा
कोई तदबीर बता ऐ दिल-ए-आज़ार-पसंद
उस को जी जाँ से भुलाने में तो अरसा होगा
हुस्न की ख़ल्वत-ए-सादा भी है सद-बज़्म-तराज़
इश्क़ महफिल में भी होगा तो अकेला होगा
झुटपुटा छाया है कौन आया है दरवाज़े पर
देखना ‘शाज़’ कोई सुब्ह का भूला होगा