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मेरी शक्ति थक गयी सारी, उद्यम-बलने मानी हार / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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मेरी शक्ति थक गयी सारी, उद्यम-बल ने मानी हार।
हुआ चूर पुरुषार्थ-गर्व सब, निकली बरबस करुण पुकार॥
शक्तिमान हे! शक्ति-स्रोत हे! करुणामय! हे परम उदार।
शक्तिदान दे कर लो मुझको यन्त्र-रूपमें अंगीकार ॥
हरो सभी तम तुरत, सूर्य-सम करो दिव्य आभा विस्तार।
जो चाहो सो करो, नित्य नि:शंक निजेच्छाके अनुसार॥
कहीं डुबा रक्खोकैसे ही, अथवा ले जाओ उस पार।
अथवा मध्य-हिंडोलेपर ही, रहो झुलाते बारंबार॥
भोग्य बना भोक्ता बन जाओ, भर्ता बनो भले सरकार।
बचे न ’ननु नच’ कहनेवाला, मिटें अहंके क्षुद्र विकार॥
कौन प्रार्थना करे, किस तरह, किसकी, फिर, हे सर्वाधार!।
सर्व बने तुम अपनेमें ही करो सदा स्वच्छन्द विहार॥