भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी सहचरी / बाद्लेयर / सुरेश सलिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी सहचरी ‘सोसाइटी स्टार’ नहीं,
वह आवारागर्द, वह अगर टिमटिमाती-झिलमिलाती है
तो मेरी आत्मा से प्रतिबिम्बित रोशनी की वजह से ।
नक़ली और बनावटी दुनिया की आँखों में अदृश्य उसकी सुन्दरता
सिर्फ़ मेरे उदास दिल में पुष्पित होती है ।

जूते ख़रीदने के लिए उसने अपनी आत्मा बेच दी;
ऊपर वाला हँसेगा, अगर मैं इस बदनाम चीज़ के साथ
होते हुए भी पाखण्ड करूँ और ऊँचे उसूलों का ढोंग भरूँ
जबकि मैं अपनी बुद्धि को बेचता हूँ और लेखक बनना चाहता हूँ ।

सबसे बुरी बात यह है कि वह विग पहनती है,
उसकी बदरंग घाँटी पर से सारे ख़ूबसूरत काले बाल उड़ चुके हैं
मगर उसके माथे पर — किसी कोढ़ी के माथे से भी ज़्यादा भोण्डे
और बदशक़्ल उसके माथे पर प्यार-भरे चुम्बनों की बारिश थमी नहीं ।

वो भेंगी है, और किसी फ़रिश्ते की बरौनियों से भी बड़ी काली बरौनियों से
घिरी, उसकी विलक्षण दृष्टि का प्रभाव ऐसा हे, ख़ासकर मेरे
लिए, कि वे सारी आँखें, जिनके लिए लोग खुद को कोसते रहते हैं,
उसकी काले दायरों से घिरी, यहूदियों-जैसी आँखों की बराबरी नहीं कर सकतीं ।

वो महज़ बीस की है, पहले से ही गिरी हुई उसकी छातियाँ
दोनों ओर तूँबी जैसी लटकती,
तब भी, हर रात खुद को उसके जिस्म पर घसीटता-रगड़ता,
किसी दुधमुँहे बच्चे की तरह उन्हें चिचोड़ता और काटता हूँ ।

और हालाँकि अक्सर ताम्बे का एक सिक्का तक नहीं होता उसके पास
कि वो जिस्म की मालिश करा सके, कन्धे चमकवा सके,
मैं ख़ामोशी के साथ सहलाता हूँ उसे आहिस्ते-आहिस्ते
मैग्दालन<ref>बाइबिल (न्यू टेस्टामेंट) में एक प्रसंग के अनुसार इस पतिता का उद्गार ईसामसीह ने किया था।</ref> के जलते पाँवों से बढ़कर उत्ताप के साथ ।

क़िस्मत की मारी बेचारी ! ख़ुशी और सन्तोष से ऊब-चूब,
फूहड़ हिचकियों से फूले-सिकुड़े उसका सीना,
तो उसकी उखड़ी साँस की खड़खड़ाहट से मैं बता सकता हूँ
कि इसने यतीमों के किसी अस्तपाल की रोटियाँ तोड़ी हैं अक्सर ।

उसकी फटी-फटी परेशान हाल आँखें बेरहम रातों के दौरान,
महसूस करती हैं कि बिस्तर के बग़ल की ख़ाली जगह में
दो आँखें और नज़र आ रहीं,
हर आने वाले के लिए बार-बार अपना दिल खोलते रहने से
डरी हुई रहती है अन्धेरे में, सोचती रहती है भूतों के बारे में ।

अगर कहीं दिख जाए, ऊटपटाँग-बेढंगे कपड़ों में
गिरती-पड़ती हुई किसी वीरान-उजाड़ गली के मोड़ पर

किसी ज़ख़्मी कबूतर की तरह सिर-आँखें डाले, और
नंगे पाँवों गन्दी नालियों में से घिसटते;

गालियाँ और लानतें मत थूकने लगिएगा, जनाबेआली !
उस बेचारी के रँगे पुते चेहरे पर, भूखकुमारी ने जिसे
जाड़े की एक शाम खुलेआम
अपना घाघरा उठाने को मजबूर कर दिया था ।

वह जिप्सी औरत सब कुछ है मेरी
मेरी दौलत, मेरी माणिक-मोती, मेरी रानी, मेरी बेग़म ।
वही है जिसने मुझे अपने कुल फ़त्हयाल आगोश में भरकर
बसैयाँ लीं,और अपनी बाँहों की दरमियानी गर्मजोशी से मेरे दिल की परवरिश की।

अंग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल

शब्दार्थ
<references/>