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मेरी सुधियों में जब तुम हो या जाते / रंजना वर्मा

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यह नयन सीप हैं दृग जल छलका जाते।
मेरी सुधियों में जब तुम हो आ जाते॥

जब नीलांबर में है चंदा मुस्काता
आकाश मोतियों की जब सेज सजाता,
अलसा कर सो जाती है रजनी बाला
प्यासी आँखों में अलस नहीं भर पाता।

अधखुले दृगों को स्वप्न तुम्हारे भाते।
मेरी सुधियों में जब तुम हो आ जाते॥

तितली जब सोती सुमनों की पाँखों पर
कम्पित होते नीहार धरा आँखों पर,
पी को ढूँढा करता चातक जब वन में
गूंजा करता कलव तरु की शाखों पर।

पी के स्वर हैं श्रवणों में घुल-घुल जाते।
मेरी सुधियों में जब तुम हो आ जाते॥

संसार नहाता दूध-चाँदनी ले कर
मांझी ले जाता है नैया को खे कर,
नाचा करता वशी का स्वर लहरों पर
सरिता मिटती सागर को सब कुछ देकर।

लहरों के स्वर जीवन के गीत सुनाते।
मेरी सुधियों में जब तुम हो आ जाते॥