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मेरी सेज हाज़िर है / भावना जितेन्द्र ठाकर

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उर खाली है,
स्पंदनों की बस्ती उज़ड गई,
फिर भी तुमको बसना है,
मन भरा है दर्द के आबशारों से,
जिसको तुमने छुआ तक नहीं।

खाली कर आई हूँ खुद को,
अपने आशिक के इश्क का प्रतिसाद देते,
लाल जोड़े में सजा कोरा कैनवस ले जाओ,
एक भी रंग जिसमें मेरी पसंद का नहीं।

शहनाई का शोर तुम्हारे लिए सुखमय होगा,
मातम है मेरे लिए, मौत हुई है
आज मेरे अरमानों की,
मेरे सपनों की,
मेरी चाहत की।

बेच कर मेरे एहसासों को,
खरीद लिए आँसूं मेरे अपनों ने मेरे लिए,
जश्न मनाओगे तुम किसी ओर की अमानत अपने नाम करके।

चुटकी सिंदूर के बदले तन का बिछौना हाज़िर है,
दिल के केनवास पर कोई और नाम झिलमिलाता है,
जो ताज़िंदगी रोशन रहेगा।

तन लाश है, मन खिला-खिला-सा उपवन,
भोग लो मुर्दे की खाल को,
नखशिख खून की रवानी में अपने प्रेमी को घोल रखा है।

बदन से पहरन उतार लो,
रूह के भीतर रममाण जो बसता है
उसे कहाँ फेंक आओगे?
एहसासों को दफ़न करके मैंने महज़ रिवाज़ों को अपनाया है।

जहाँ में सिर्फ़ दो रजवाड़े थे,
एक ने जन्म देकर अधिकार थोप दिया,
दूसरे ने बिना जानें मेरी भावनाओं को आह्वान दिया।

"नहीं पूछी गई मनसा मेरी"
कतरा-कतरा काट कर मेरी मोहब्बत का भोग लगा दिया,
आओ अनमने सरताज मेरे देह की सेज
तुम्हारे देह के नीचे बिछाने के लिए हाज़िर है।
"क्या पाओगे? राख के ढेर में शोला है न चिंगारी"