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मेरी हर बात लगे नागवार और अभी / बलबीर सिंह 'रंग'

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मेरी हर बात लगे नागवार और अभी
एक बार और अभी
एक बार और अभी

कोई पा जाये किसी का भी प्यार क्या मानी
हिज्र मैं कोई रहे बेक़रार क्या मानी
कोई अपने को कहे खुशग़वार क्या मानी
उम्र भर कोई करे इन्तज़ार क्या मानी

इन्तज़ार और अभी
इन्तज़ार और अभी
एक बार और अभी
एक बार और अभी

कोई पीने से ही मैख़्वार नहीं होता है
कोई कहने से ही गुनहगार नहीं होता है
जानने की ये तमन्ना न हुई बन्दों को
तेरे दीवानों में किस किस का शुमार होता है

ये शुमार और अभी
ये शुमार और अभी
एक बार और अभी
एक बार और अभी

ऐसा लगता है कि फिर लौट के आई है बहार
गुंचे गुंचे में पड़ी शबनमी बूँदों की फुहार
दामिनी छिपने लगी बादलों के दामन में
रंग पर आने लगा अधखिली कलियों का निखार

ये निखार और अभी
ये निखार और अभी
एक बार और अभी
एक बार और अभी