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मेरे अहसास के शोलों पे बस / पूजा बंसल

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मेरे अहसास के शोलों पे बस इतनी अता करना
बुझे हर जख्म पर दिल के तू दामन से हवा करना

मेरी आँखे शबे फ़ुर्क़त निहारे चाँद को कब तक
शरफ़ दीदार का अपने_मेरे हमदम अता करना

मुहब्बत पाक का सजदा बुत ए इंसान है काफ़िर
बनूँ ताबीर जन्नत की खुदा तू भी दुआ करना

इशारों से कहीं बेहतर लबों से बात कहना है
बड़ा महफूज़ होगा अनमनी हाँ को मना करना

मुक़म्मल हों न हो वादे मगर ये इल्म हो हमदम
जो अपना राबता टूटे न इसका तब्सिरा करना

सलीक़ाए मुहब्बत बन्द आँखों में भी दिलबर हो
अदब इतना नहीं सीखा तो क्या सीखा वफ़ा करना

चलो ऐसा करो तुम को भी हम इक काम देते हैं
हमारी आँख से टपके हुए मोती चुना करना

भटक जाओगे रस्ते मे हमारा मशवरा ले लो
नहीं "पूजा" की मंजिल और न नक़्शे पा पता करना