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मेरे आँसू मेरे ग़म का तुझे पता ही नहीं / रंजना वर्मा

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मेरे आँसू मेरे ग़म का तुझे पता ही नहीं।
और उस पर ये सितम मेरी कुछ ख़ता ही नहीं॥

मेरे जीवन में अँधेरा घिरा अमावस का
कैसे फूलों ने भुलाया कोई ग़म पावस का।

कैसे भटकूँ न यहाँ कोई रास्ता ही नहीं।
और उस पर ये सितम मेरी कुछ ख़ता ही नहीं॥

तू कहे रेत के मैदानों में खिल जाऊँ मैं
एक इशारे पर तेरे धूल में मिल जाऊँ मैं।

क्या कहूँ तूने मेरे प्यार को समझा ही नहीं।
और उस पर ये सितम मेरी कुछ ख़ता ही नहीं॥

मेरा सपना मेरा अरमान तुझी तक तो है
भोर हो चाहे जहाँ शाम तुझी तक तो है।

कैसे कह दूँ कि मेरा तुझसे वास्ता ही नहीं।
और उस पर ये सितम मेरी ख़ता ही नहीं॥