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मेरे आरती के दीप / अज्ञेय

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 मेरे आरती के दीप!
झिपते-झिपते बहते जाओ सिन्धु के समीप!
तुम स्नेह-पात्र उर के मेरे-
मेरी आभा तुम को घेरे!
अपना राग जगत का विस्मृत आँगन जावे लीप?

मेरे आरती के दीप!
हम-तुम किस के पूजा-साधन? किस को न्यौछावर अपना मन?
प्रियतम! अपना जीवन-मन्दिर कौन दूर द्वीप!
मेरे आरती के द्वीप!

डलहौजी, 1935