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मेरे आस-पास / नोमान शौक़
Kavita Kosh से
टूटी हुई बाँसुरी
सूखे होंठों पर धरी है
बरसों से
टूटा हुआ गुलदान
पड़ा है मेरे सामने
फूलों की बिखरी पंखुड़ियाँ भी
नहीं चुनी जा सकतीं
टूटी हुई व्हील चेयर पर बैठकर
बल्कि
और बढ़ती जा रही है
टूटे हुए पाँव की पीड़ा।
मेरे आसपास
कुछ भी वैसा नहीं
जैसा होना चाहिए !