Last modified on 4 अगस्त 2012, at 11:43

मेरे उर में जिस भव्य आराधना का / अज्ञेय

 मेरे उर में जिस भव्य आराधना का उपकरण हो रहा है, तुम उस के लक्ष्य, मेरे आराध्य, नहीं हो।
मेरे उरस्थ मेरा तुम्हारे प्रति प्रेम-उस प्रेमव्रत के सम्यक् उद्यापन की कामना में निरत मेरी उग्र शक्ति-ही मेरी आराध्य है।

तुम? तुम हो उस आराधना के आरती-दीप, मेरे सहयोगी, मेरी उपासना को दीप्ति देने वाले, मेरे प्रज्वलित प्राण! पर मेरे उर में जिस भव्य आराधना का उपकरण हो रहा है, तुम उस के लक्ष्य, मेरे आराध्य, नहीं हो।

1936