भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे क़रीब ना आओ के मैं शराबी हूँ / सबा सीकरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे क़रीब ना आओ के मैं शराबी हूँ
मेरा शऊर<ref>सभ्यता, शिष्टाचार</ref> जगाओ के मैं शराबी हूँ

ज़माने भर की निगाहों से गिर चुका हूँ मैं
नज़र से तुम ना गिराओ के मैं शराबी हूँ

ये अर्ज़ करता हूँ गिर के ख़ुलूस<ref>निष्कपटता, निश्छलता, सच्चाई</ref> वालो से
उठा सको तो उठाओ के मैं शराबी हूँ

तुम्हारी आँख से भर लूँ सुरूर<ref>हल्का नशा, हर्ष, आनन्द</ref> आँखों में
नज़र नज़र से मिलाओ के मैं शराबी हूँ

शब्दार्थ
<references/>