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मेरे ख़ुदा का इतना करम कू-ब-कू रहे / शिवांश पाराशर

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मेरे ख़ुदा का इतना करम कू-ब-कू रहे,
हर दिल को दस्तयाब मुहब्बत की ख़ू रहे

हैरां हूँ इसके बोझ से वाक़िफ़ हैं आप भी,
क्या आप भी किसी की नज़र में कभू रहे

बेशक़ कभू तो समझेंगे इक दूसरे को हम,
बस मुख़्तसर-सी होती अगर गुफ़्तगू रहे

बस सोचकर ये ख़ुद से न मिलता हूँ मैं कभी,
कोई तो ज़िन्दगी में बची आरज़ू रहे

हर उज़्ब माँगता है दुआ तुझसे रात दिन,
मेरी इबादतों में ख़ुशू-ओ-खु़जू़ रहे

आफ़ाक़ में उड़ूँगा सलामत हैं बाल-ओ-पर,
अज़्मत मेरी बुलंद हो और ख़ैर-ख़ू रहे

बरबादियों की दास्तां जब भी लिखेंगे हम,
होगा मुअय्यन इतना कि किरदार तू रहे