मेरे खातिर सांस का एतबार है ग़ज़ल / सांवर दइया
अपनी बात
मेरे खातिर सांस का एतबार है ग़ज़ल।
अंधेरे के खिलाफ़ तेज हथियार है ग़ज़ल।
बिचौलियों से बात नहीं टाल सकते आप,
रू-ब-रू जबाब मांगने को तैयार है ग़ज़ल।
रोटी का अर्थ रोटी ही रह गया जनाब,
बदचलन शब्दों से अब ख़बरदार है ग़ज़ल।
सिक्कों की एवज़ कैसे रख दें जुबां गिरवी,
हमारे लिए जीने का आधार है ग़ज़ल।
हवा क़ैद करने की साजिश करते हैं जो,
उन जालिमों के खिलाफ़ ललकार है ग़ज़ल।
ठोकर मार कर बच नहीं सकते आप,
बर्फ़ का घरौंदा नहीं, अब अंगार है ग़ज़ल।
कोने में ले कुछ कहने की जरूरत नहीं,
जनाबेआली ! अब खुला दरबार है ग़ज़ल।
सिर्फ़ अपने ही दो आंसुओं का जिक्र नहीं,
ज़माने भर के दर्द का अख़बार है ग़ज़ल।
फिर-फिर पूछिये, लेकिन अपना जवाब यही,
खुली हवा, रोशनी, फस्ले-बहार है ग़ज़ल।
गर्म हवाओं में फिर निकला आज अकेला,
सदा की तरह मेरे साथ, इस बार है ग़ज़ल।