भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे खेल / रामकृष्ण खद्दर
Kavita Kosh से
मैं खूब फुदकता रहता हूँ,
मैं लुकता छिपता रहता हूँ।
मैं आँख मिचौली खेलता हूँ,
मैं चूहा बिल्ली खेलता हूँ।
मैं चूँ चूँ म्याऊँ करता हूँ,
मैं मच्छी, मच्छी खेलता हूँ।
मैं कित्ता पानी पूछता हूँ,
मैं यह सब खेल खेलता हूँ।
-साभार: बालसखा, जुलाई 1940, 301