भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे ख्वाब / असंगघोष

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं
ख्वाब देखते
समय भी
अपने पाँव
जमीन पर
रखना चाहता हूँ
कहीं यह
उड़ते हुए
छू गए
बिजली के तारों से
तो
ना चाहते हुए भी
उलझ ही जाएँगे
ख्वाबों में...।