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मेरे गर्भस्थ शिशु / राजेन्द्र सारथी

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(एक गर्भवती महिला का अपने गर्भस्थ शिशु से एकालाप)

मेरे गर्भस्थ शिशु!
तुम जो भी हो, लड़का या लड़की
मेरी बात ध्यान से सुनना
यदि तुम लड़के हो
तो जरूरी है तुम्हारे लिए यह जानना
कि किसी भी चक्रव्यूह के बारे में
मैं कुछ नहीं जानती
न प्रवेश के बारे में
न निकलने के बारे में
तुम्हारे पिता से कभी कोई बात ही नहीं हुई मेरी
किसी चक्रव्यूह के बारे में
हालांकि लड़ वे भी रहे हैं ज़िन्दगी की महाभारत
शाम को लौटते हैं वे लस्त-पस्त
उन्हें समय ही नहीं मिलता
रोटी-सब्जी और नींद से इतर बातें करने का
इसीलिए तुम्हारे पिता
नहीं चाहते थे अभी कोई संतान।

फिर भी ओ मेरे सजीले स्वप्न!
मैंने तुझे अपनी देह के पिंजरे में पाला है
परखनी है मुझे अपनी कोख
उससे बांझपन का दाग मिटाना है
मैंने मना लिया है तेरे पिता को
मैं तुझे नष्ट नहीं होने दूंगी
प्रसव के दर्द सहूंगी और तुझे जन्मूंगी।

मेरे अन्चीन्हे गर्भस्थ शिशु!
मुझे चिन्ता तेरी परवरिस की है
भूखा तो नहीं मरने दूंगी मैं तुझे
जब तक मेरे आंचल में दूध उतरेगा, तुझे पिलाऊंगी
जरूरत पड़ने पर अपने हिस्से का भोजन भी खिलाऊंगी
चिन्ता मेरी यह है
मुफलिसी में तू निष्णात वीर कैसे बन पाएगा?
जीवन की महाभारत में शत्रुओं से कैसे जूझ पाएगा?
सगे संबंधी भी मिलेंगे तुझे
ज्ञान की पूंजी बिना तू उनसे कैसे पार पएगा?

मेरे प्यारे गर्भस्थ शिशु!
ध्यान से सुनना मेरी बात
आज से तुम अपना एक कान
मेरे पेट से लगाए रखना
तुम्हारे तजुर्बे के लिए
मैं रोज पूछूंगी तुम्हारे पिता से
उनके जीवन संग्राम के बारे में
कि कैसी-कैसी व्यूह रचना करनी पड़ती है उन्हें
किन-किन संकटों का करना पड़ता है सामना
किन-किन पैंतरों से जूझते हैं वे--
अपना अस्तित्व बचाने के लिए
तुम ध्यान से सुनना
अभिमन्यु की तरह मन ही मन गुनना हमारी बातों को
इस जमाने के आचार-व्यवहार को
इस समय तुम्हें फुर्सत ही फुर्सत होगी
हो सके तो भविष्य का खाका बुनना।

मेरे प्यारे गर्भस्थ अंश!
यदि तुम लड़की हो
तब तो अत्यंत जरूरी है तुम्हारे लिए यह जानना
कि बहुत मुश्किल है इस बहशी ज़माने में
लड़कियों को पालना
यहां मानव रूपी भूखे भेड़िये
चबा जाते हैं अकेली लड़की को
सेंध लगाकर उठा ले जाते हैं उन्हें असुरक्षित घरों से
बेच देते हैं उन्हें ज़िदा गोश्त के शोरूमों में
बच निकलती हैं जो इन भेड़ियों से
उन्हें स्वयं मरना होता है शर्म खाकर
वर्ना दूभर कर देता है यह ज़माना
बदलचन बताकर
इसीलिए बहुत से परिवारों ने
लड़कियों को जन्म देना ही बंद कर दिया है
जांच कराकर मालूम कर लेते हैं कि गर्भ में क्या है?
लड़की होती है तो कत्ल करा देते हैं
गर्भ में ही भ्रूण का।

मेरे गर्भस्थ फल!
एक कारण और भी है लड़कियों की उपेक्षा का
शादियों में दहेज का चलन है
आडंबरों का दिखावा है
दूल्हे खरीदे जाते हैं मोलभाव से
लड़की की शादी को लेकर
मां-बाप की छाती भर जाती है घाव दर घाव से
इसीलिए अनेक घरों में पैदा होते ही
मार दी जाती हैं लड़कियां
कोई भी खोलना नहीं चाहता अपने घरों में
आफत की खिड़कियां।

मेरे गर्भस्थ प्रेम पुष्प!
पंडित आचार्यों के पोथी-ग्रंथ
समाज के मिथक
प्रचलित किंवदंतियां
पुत्र को कुलदीपक/कुलतारक
और पुत्री को कर्ज की गठरी बताते हैं
पुत्रमोही हो गया है समाज
पुत्रियों के ज़िन्दगी पर गिरा रहा है वह गाज।

मेरे प्रिय गर्भस्थ शिशु!
तुम जो भी हो, लड़का या लड़की
मेरी बात से ध्यान से सुनना
मैं चाहती हूं
मेरी संतान में दृढ़ता हो, वीरत्व हो
जुझारूपन हो
कुरीतियों से लड़ने का साहस हो
सच बताना
क्या तुम लड़ सकोगे कुरीतियों से?
चल सकोगे सत्य की राह पर मेरे साथ-साथ?

मेरे अंश!
कायर और कलंकित होकर जीने से
न जन्मना ही अच्छा है
तुम्हारी क्या इच्छा है?
मेरी कोख में अमृत और गरल दोनों की ही धाराएं हैं
अनिच्छा जागृत हो गई हो संसार में आने के प्रति
तो गरल पी लेना, मौन हो जाना
तुम्हारे साथ मुझे भी मुक्ति मिल जाएगी
देह-बंधन से, इस संसार से
और यदि जूझने की जीवटता है तुम्हारे पास
तो खिलखिलाना, हाथ-पैर चलाना
मैं समझ जाऊंगी
मेरा आने वाला कल अमृत पीकर आ रहा है।