भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे ग़म का हिसाब / नमन दत्त
Kavita Kosh से
मेरे ग़म का हिसाब होने दे।
ख़ुश्क नज़रें पुरआब होने दे॥
जी लिया मैं बहुत जुगनू बन के,
अब मुझे आफ़ताब होने दे॥
रायगां ज़ीस्त मेरी अब तुम बिन,
इसको दश्तो-सराब होने दे॥
तेरी चाहत मेरी इबादत है,
हसरतों को सवाब होने दे॥
फिर से कानों में कह के बात वही,
फिर मुझे लाजवाब होने दे॥