भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे गाँव का स्कूल उदास है / मनोज तिवारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे गाँव में
नीम की फुनगी पर
बैठ
रोज़ ही
निहारता है
मेरे स्कूल को
पीला चाँद
ढहे - ढनमनाए
छतों - दीवारों से
प्रत्येक कक्षा का
मुआयना करता है
खुरदरे व सफेद
ब्लैकबोर्ड पर
खड़िया से
लिखे प्रत्येक हर्फ को पढने की
कोशिश में
कई बार अपनी
आँखें मींचता है
और वह
पढ पाने में
असफल रहने पर
लंबे डग से
कक्षा को लांघता हुआ
बढ जाता है आगे ।
मेरे गाँव का स्कूल
उदास है आज
तार तार हो आए
चट पर
चाँद को कैसे व कहाँ बिठाए
सोचता है वह
यहाँ तो पारस है
छू जाती है
जब - जब इसकी मिट्टी
जिस किसी को
वह सोना हो जाता है
आखिर पारस भी तो
पत्थर ही है न