मेरे गीतों की बुलबुल / उर्मिल सत्यभूषण
मेरे गीतों की बुलबुल
उड़कर भाई घर जाना
मेरी राखी बांध के आना
मेरी आँखों के मोती
उन के सिर पर से घुमाना
मेरी उमर की चादर
उनकी आयु पे चढ़ाना
मेरे गीतों की बुलबुल।
तू पंख न कहीं फड़काना
मेरे जख्मों की लाली
उनको न तू दिखलाना
मेरे गीतों की बुलबुल।
तू मौन अधर ही रहना
तेरे पंखों को मरोड़े गर
मुंह से कुछ मत कहना
गाली से झोली भरना
उलहानों, तानों की सुइयां
चुभती हो, चुप-चुप सहना
मेरे गीतों की बुलबुल।
चुपके से घर में जाना
पहले कुछ शगुन मनाना
आंगन में खुशबू करना
घर में रौशनी फैलाना
फिर हौले-हौले गाना
माँ की रूह को भी बुलाना
मेरे गीतों की बुलबुल।
भाइयों को पास बिठाना
‘सहोदरत्व के नाते
क्या होते हैं’ समझाना
फिर छेड़ना तानसुरीली
मीठी मीठी दर्दीली
आंसू से गीली गीली
”माँ की न कोख लजायें
बहनों की लाज बचायें
बहनों संग नहीं शरीके
बहनों के दुःख बंटायें
तुम याद करो वह आंगन
माँ-बाप ने पेड़ लगाये
तुम याद करो माँ-बापू
जिन्होंने बाल खिलाये
तुम याद करो वह बचपन
जो खुशियों बीच नहाये
तुम याद करो वह टीके
माथे पर बहन लगायें
तुम याद करो वह धागे
राखी में बहन गुंथाये
गाते गाते मेरी बुलबुल!
माथे पर टीका करना
खुशियों का भर परागा
वीरों की झोली भरना
आशीश की मुट्ठी भरकर
भाई के शीश घुमाना
मुंह मीठा कुछ लगाना
तब बांध के मेरी राखी
भैया की बांह सजाना
बहना का न्यौता देना
फिर वारी सदके जाना
बहना से भाई मिलाना
बहना से वीर मिलाना।