भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे गीतों को अधरों का आधार दे दो / शशांक मिश्रा 'सफ़ीर'
Kavita Kosh से
मेरे गीतों को अधरों का आधार दे दो।
मेरी अनन्त अव्यक्त इच्छाओं को,
ह्रदय के उन्मुक्त भावों को,
खुला आकाश दे दो।
विकल ह्रदय है, गहन उदासी।
इच्छायें शत्-शत् प्यासी।
मेरे अतृप्त मन को छू कर,
और थोड़ा प्यास दे दो।
बिना निमंत्रण चले आना।
बिन बताये चले जाना।
दर्द दे जाना ह्रदय को,
देख कर मौसम सुहाना।
श्याम को वंशीवट पर,
मिलान की आश दे दो।
है तुम्हारी याद नर्तनी सी,
मेरे अंतस में इतराती है।
देख भावना चंचल मन की,
खुद में ही शर्माती है।
छू कर अधरों से पोर पोर,
तुम प्रणय का आगाज दे दो।
हे प्रिय तुम साथ दे दो।
जीने का नया अंदाज दे दो।