मेरे गीत तुम्हारे / प्रतिभा सक्सेना
मेरे गीत तुम्हारे !
ये अभाव के गान,
किसी मानस की आकुल तान,
व्यथा की क्षण-क्षण की अनुभूति,
जहाँ पर आ कर बँधती !
बात एक ही मेरी चाहे तेरी,
जो पग-पग पर हारे !
मेरे गीत तुम्हारे !
स्वप्निल पलकें खोल चले
जग के रूखे आँगन में,
वे जीवन के फूल जिन्हों ने
मधु के दिवस न देखे
बसने को पतझार चला
जिन साँसोँ के कानन मे!
वे अटके भटके से,
बेबस जीवन के मारे,
मेरे गीत तुम्हारे !
अधरों की मुस्कान,
हृदय का क्रन्दन जहाँ मिलेँगे,
करुणा-सिंचित कथा–कहानी,
भले न मुख से फूटे,
उस माटी मे गन्ध-विकल
गीतोँ के फूल खिलेँगे !
अश्रु-हास सुख-दुखमय जीवन
चलता साथ तुम्हारे !
मेरे गीत तुम्हारे !
मेरे स्वर ही मेरा परिचय,
इतना-सा ही नाता,
जगती की क्षणमयता और
समय की लहरोँ मे भी
एक यही संबंध
जोड़ता मन से मन का नाता !
हार गई जो अपनी बाजी
लिखती नाम तुम्हारे
मेरे गीत तुम्हारे!