भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे गूंगे प्रश्न, क्या कभी तुम सुन लोगे / सुनील त्रिपाठी
Kavita Kosh से
मेरे गूंगे प्रश्न, क्या कभी तुम सुन लोगे।
उत्तर से संतुष्ट, मुझे कब तक कर दोगे॥
हरे अभी तक घाव, गये हो देकर जो तुम।
उन पर आकर हाथ, प्यार से कब फेरोगे॥
पड़े अधूरे स्वप्न, अभी तक इन नयनों में।
गहरी मीठी नींद, पुनः क्या सुला सकोगे॥
जानोगे, किस तरह, जिए हम बिना तुम्हारे।
बहा अश्रु जब पत्र, अधजले हुए पढ़ोगे॥
मूल्य भले अनुमान, लगा लो उपहारों का।
अनुमानित किस भांति प्रीति अनमोल करोगे॥
चाह किसी की नहीं, किन्तु यह होगा निश्चित।
दर्पण में प्रतिबिम्ब एक दिन तुम ढूंढोगे॥
घर यादों का बन्द, भले कर डालो मेरी।
पर सुनील को शेष, झरोखे से झांकोगे॥