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मेरे घर की भी कभी शोभा बढ़ाकर देखें / शोभा कुक्कल

मेरे घर की भी कभी शोभा बढ़ाकर देखें
मैंने जो फूल खिलाए हैं वो आकर देखें

जो हैं कमज़ोर जिन्हें आपसे आशाएं हैं
उनके हक़ में कभी आवाज़ उठा कर देखें

ख़ूबसूरत नज़र आयेगी ये दुनिया सारी
आप चेहरे से मुखौटों को हटाकर देखें

देश की नींद उड़ा रखी है जिन लोगों ने
आओ उनकी भी कभी नींद उड़ा कर देखें

बीच मझदार के अब नौका घिरी है जिनकी
खुद को उनके लिए पतवार बना कर देखें

प्यार ही प्यार नज़र आयेगा हर जानिब से
अपने दिल से कभी नफ़रत को मिटा कर देखें।