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मेरे जितने भी निन्दक हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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मेरे जितने भी निन्दक हैं
उन सबको धन्यवाद मेरा
दुख मुझको देकर जिस-जिस ने
है सिखा दिया ग़म को पीना
मुँह मोड़, छोड़ मुझको जिसने
है सिखा दिया तन्हा जीना
उस से हो इत्तिहाद मेरा
अपमान बहुत मेरा कर के
सम्मान क्षणिक यह सिखलाया
जिस-जिस ने हो मेरे ख़िलाफ़
अपनों तक मुझको पहुँचाया
उस-उस को साधुवाद मेरा
जिस-जिस ने मुझे पराजित कर
मेरे ग़ुरूर को चूर किया
डर दिखा भविष्यत का मुझको
आलस्य हमेशा दूर किया
ले-ले आशीर्वाद मेरा