मेरे जैसा कुछ / सुलोचना वर्मा

नहीं हो पाई विदा
मैं उस घर से
और रह गया शेष वहाँ
मेरे जैसा कुछ

पेल्मेट के ऊपर रखे मनीप्लाण्ट में
मौजूद रही मैं
साल दर साल

छिपी रही मैं
लकड़ी की अलगनी में
पीछे की कतार में

पड़ी रही मैं
शीशे के शो-केस में सजे
गुड्डे-गुड़ियों के बीच

महकती रही मैं
आँगन में लगे
माधवीलता की बेलों में

दबी रही मैं
माँ के सन्दूक में सम्भाल कर रखी गई
बचपन की छोटी-बड़ी चीज़ों में

ढूँढ ली गई हर रोज़
पिता द्वारा
ताखे पर सजाकर रखी उपलब्धियों में

रह गई मैं
पूजा घर में
सिंहासन के सामने बनी अल्पना में

हाँ, बदल गया है
अब मेरे रहने का सलीका
जो मैं थी, वो नहीं रही मैं ।

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