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मेरे जो बन्धु थे / रामकृष्ण पांडेय
Kavita Kosh से
कभी नहीं लिखा पत्र किसी ने
समाचार भी नहीं भेजा कभी
किसी के मार्फ़त
मेरी भी नहीं ली कोई खोज-ख़बर
मेरी ही तरह
रमे होंगे अपने-अपने धन्धों में
जी रहे होंगे अपना-अपना जीवन
जैसे मैं जी रहा हूँ
फिर भी याद तो आती ही होगी
कभी न कभी
हो जाते होंगे व्याकुल
मेरी ही तरह