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मेरे तन के तुम अधिकारी ओ पिताम्बरधारी / काजी नज़रुल इस्लाम

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मेरे तन के तुम अधिकारी ओ पिताम्बरधारी।
अंजली मै दे चुकी हूँ (उन) चरण पे बनवारी।
यतन ए तन का करती हूँ मैं
सोलह सिंगार रचती हूँ मैं
तुम्हारी बस्तू ओ मनोहर करती हूँ बखवारी।
तुम्हारे खातिर सजाऊँ वो तन,
पहरुँ मोहन कंकन भूषण,
बन बन फिरती साथ तुम्हारे गोपीजन मनहारी।
मोहन बंसी सुनती हूँ मैं,
नुपूर गुंजन सुनती हूँ मैं।
तुम्हारे खातिर यमुना तट को (बनबन) आती सब बृजनारी।