भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे तो आज साचे राखे हरी साचे / मीराबाई
Kavita Kosh से
मेरे तो आज साचे राखे हरी साचे। सुदामा अति सुख पायो दरिद्र दूर करी॥
मे०॥१॥
साचे लोधि कहे हरी हाथ बंधाये। मारखाधी ते खरी॥ मे०॥२॥
साच बिना प्रभु स्वप्नामें न आवे। मरो तप तपस्या करी॥ मे०॥३॥
मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर। बल जाऊं गडी गडीरे॥ मे०॥४॥