मेरे दादा की धोत्ती / सुन्दर कटारिया
मेरे दादा की धोती
मेरी दादी ना धोती।
धोती के थी कमाल थी
वा हे तौलिया वाहे रुमाल थी।
ऊस्सै तै न्हाते ऊस्सै नै धोते
निचोड़ कै गरमी मै ओढ कै सोते।
खाट पै बिछती बिस्तर बण ज्याती
गुड्डे गुडियां का घर बण ज्याती।
धोती के माच्छरदानी देगी थी
संकरात पै दादा तै नानी देगी थी।
नानी अर दादा की यारी थी
धोती दादा नै ब्होत प्यारी थी।
दादा धोती नै जी तै लाता
अर जिब भी नानी बुलाती
ईस्सै नै बांध कै जाता।
दादा पै सुरूर मोट्टा चढ़ रह्य था
चमकदार धोती पै घोट्टा चढ़ रह्या था।
धोत्ती पूरे गाम मै छा ली थी
ईब तक तो कयी बरातां मै जा ली थी।
धोती कदे खाली हाथ नही आई थी
कदे लाड्डू तो कदे जलेबी ल्याई थी।
उसका हमनै बड़ा सहयोग था
धोती की किस्मत मै राजयोग था।
धोती के थी कति जहरी थी
एक बै तो गाम के सरपंच नै भी पहरी थी।
खूब बढ़िया समान ल्याई थी
सौ रपिये मान तान ल्याई थी।
पर दादी धोत्ती नै देखते हीं झींक्यां करती
क्योंके उसनै धोती मै नानी दीख्या करती।
जिब भी देखती बैठ कै रोती
पर मेरे दादा की धोती
मेरी दादी ना धोती।