भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे दिल की किताब रहने दे / उर्मिला माधव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 मेरे दिल की किताब रहने दे,
चुप ही रह हर जवाब रहने दे,

चैन मिलना कोई ज़रूरी है ?
ऐसा कर ,इज़्तराब रहने दे,

आँख रोती हैं जा इन्हें ले जा,
मेरे नज़दीक ख्वाब रहने दे,

एक चिलमन बहुत है परदे को
आने-जाने को बाब रहने दे,

तुझको शम्स-ओ-क़मर से तौला था,
अपनी इज़्ज़त की ताब रहने दे,

तू है मजबूर अपनी आदत से
छोड़ बाक़ी हिसाब रहने दे,

ख़ार ख़ुशबू से ख़ूब बेहतर हैं,
ले जा अपने गुलाब रहने दे

तेरी खुशियां तुझे मुबारक हों,
मुझको ख़ाना ख़राब रहने दे!