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मेरे दिल की राख कुरेद मत / बशीर बद्र
Kavita Kosh से
मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्करा के हवा न दे
ये चराग़ फिर भी चराग़ है कहीं तेरा हाथ जला न दे
मैं उदासियाँ न सजा सकूँ कभी ज़िस्म ए जाँ के मज़ार पर
न दीये जलें मिरी आँख में मुझे इतनी सख्त सज़ा न दे
नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं
ये मुहब्बतों के चराग़ हैं इन्हें नफ़रतों की हवा न दे
ज़रा देख चाँद की पत्तियों ने बिखर बिखर के तमाम शब
तिरा नाम लिखा है रेत पर कोई लहर आ के मिटा न दे
यहाँ लोग रहते हैं रात दिन किसी मस्लहत की नक़ाब में
ये तेरी निगाह की सादगी कहीं दिन के राज़ बता न दे
मेरे साथ चलने के शौक़ में बड़ी धूप सर पर उठाएगा
तिरा नाक नक्शा है मोम का कहीं ग़म की आग घुला न दे